आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
शहर बसाकर अब, सुकून के लिए गाँव ढूँढते हैं! बड़े अजीब हैं हम लोग, हाथ में कुल्हाड़ी लिए छाँव ढूँढते हैं।
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