आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
एक टहनी एक दिन पतवार बनती है, एक चिंगारी दाहक अंगार बनती है। जो सदा रौंदी गई बेबसी समझकर, एक दिन मिटटी वही मीनार बनती है ॥
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