आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तपती दोपहरी, गरम रेत पर, ठंडे पानी की बूँदों जैसा काम कर गई, कल तेरी आवाज़ जो सुनी मैंने, बेचैन दिल को आराम कर गई|
No comments:
Post a Comment