आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
आंखों में गर हो गुरूर, तो इंसान को इंसान नही दिखता। जैसे छत पर चढ जाओ, तो अपना ही मकान नही दिखता!
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