आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
फ़ासला भी ज़रूरी था, चिराग़ रौशन करते वक़्त! पर ये तजुर्बा हासिल हुआ, हाथ के जल जाने के बाद.!!
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