आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
किस रावण की काटूंँ बाहें, किस लंका को आग लगाऊँ! घर घर रावण, पग पग लंका, इतने राम कहाँ से लाऊँ!!
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