आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रंग इस मौसम में भरना चाहिए
सोचती हूँ प्यार करना चाहिएज़िंदगी को ज़िंदगी के वास्तेरोज़ जीना रोज़ मरना चाहिएदोस्ती से तजरबा ये हो गयादुश्मनों से प्यार करना चाहिएप्यार का इक़रार दिल में हो मगरकोई पूछे तो मुकरना चाहिए
अंजुम रहबर
No comments:
Post a Comment