आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
चाँद की ख़्वाहिश में,
मैं दिल लगा बैठा ।आफ़ताब से बहुत दूर रहा,और ख़ुद को जला बैठा ।।
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