आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तेरे ग़म के ख़ज़ाने से मुझे आधा नहीं मिल सकता
कभी भी आईने से रू-ब-रू अंधा नहीं मिल सकता
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तेरे काँधे पे जो सर रखकर सोए थे हम कभी
अफ़सोस मेरे जनाज़े को वो काँधा नहीं मिल सकता
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