आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
इच्छाओं की सड़क
तो बहुत दूर तक जाती है.!
बेहतर यही है कि हम
ज़रूरतों की गली में मुड़ जायें.!
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