आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
भोजना आधा पेट कर, दुगुना पानी पीव,
तिगुना श्रम, चौगुना हंसी, वर्ष सवा सौ जीव।
काका हाथरसी
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