आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मंजिल यूँ ही नहीं मिलती राही को,
जूनून सा दिल में जगाना पड़ता है.
पूछा चिड़िया को, कि घोंसला कैसे बनता है,
बोली, तिनका तिनका उठाना पड़ता है.
No comments:
Post a Comment