आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
जिन के आँगन में अमीरी का शजर लगता है
उन का हर ऐब ज़माने को हुनर लगता है चाँद तारे मिरे क़दमों में बिछे जाते हैं ये बुज़ुर्गों की दुआओं का असर लगता है माँ मुझे देख के नाराज़ न हो जाए कहीं सर पे आँचल नहीं होता है तो डर लगता है
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