Wednesday, June 7, 2023

वर्षा - दिनकर की कविता

वर्षा


अम्मा, ज़रा देख तो ऊपरचले आ रहे हैं बादलगरज रहे हैं, बरस रहे हैंदीख रहा है जल ही जल

हवा चल रही क्या पुरवाई,झूम रही डाली-डालीऊपर काली घटा घिरी है,नीचे फैली हरियाली

भीग रहे हैं खेत, बाग़, वन,भीग रहे हैं घर-आंगनबाहर निकलूं, मैं भी भीगूं,चाह रहा है मेरा मन

-रामधारी सिंह “दिनकर”

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