आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
एक यार मिला जो
अपना सा था बातें तो हो ही जाती थी. पर कुछ अधूरा सा था वो तो कभी था ही नहीं बस उसके साथ बिताए हुवे कुछ पल कि कुछ यादें ही रह गई थीं अब फिर कभी हो सकेगा तो ज़रूर मिलना होगा ना होकर भी शायद वो यूं कुछ अपना सा ही था।
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