मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं
बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार
मेरे दिल पे हाथ रक्खो, मेरी बेबसी को समझो,
मैं इधर से बन रहा हूं, मैं इधर से ढह रहा हूं विज्ञापनसहने को हो गया इकट्ठा इतना सारा दुख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुमको भूल गया
तुमको निहारता हूं सुबह से ऋतम्बरा
अब शाम हो रही है मगर मन नहीं भरा
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
मेरे गीत तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी याद दिलाने आएंगे
ये मूरत बोल सकती है अगर चाहो
अगर कुछ शब्द कुछ स्वर फेंक दो तुम भी
तुम्हीं कमज़ोर पड़ते जा रहे हो
तुम्हारे ख़्वाब तो शोले हुए हैं
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है
घंटियों की गूंज कानों तक पहुंचती है
एक नदी जैसे दहानों तक पहुंचती है
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