Tuesday, January 31, 2023

हकीक़त कहीं मिल ना पाई

हकीक़त के दौर में हकीक़त चाही
हकीक़त तो ठहरी हकीक़त कहीं मिल ना पाई 

जमाना दर ब दर गुजर तो रहा हैं 
मगर जमाने की ठहरीयत कहीं मिल ना पाई 

यु ही बेवजह जुस्तजु में रहे हम सदा 
मगर इंसा में जमीरीयत़ कहीं मिल ना पाई 

जो भी मिला हैं अब सुकुं से भरा हैं 
इस जैसी इंसानियत कहीं मिल ना पाई 

आवाम़ बसाने में काट दिये सब 
अब क्यों कहते हो शुकुनियत कहीं मिल ना पाई 

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