एक रात गुजारी न गई तेरे बग़ैर
एक रुस्वाई उठाई न गई तेरे बग़ैर
बेजार हो गया तुझ से बिछड़कर
खुशियाँ बे-स्वाद हो गई तेरे बग़ैर
रूह बदन से रुख्सत हो गया
रूत बेहोश हो गई तेरे बग़ैर
क्या कहूँ कितनी विरानी है
क्या कहूँ कितनी जहालत है तेरे बग़ैर
बदन की पीड़ा झेल नहीं पाया
जिंदगी अजाब हो गई तेरे बग़ैर
बहारें उजड़ गई अपनी
दुनियाँ नाशाद हो गई तेरे बग़ैर
कुछ नहीं बचा है इस जिस्म में ऐ दोस्त
जिस्म जिस्म को खाता है अब तेरे बग़ैर |
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