Monday, May 9, 2022

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

ऐसा है कि सब ख़्वाब मुसलसल नहीं होते

जो आज तो होते हैं मगर कल नहीं होते 


अंदर की फ़ज़ाओं के करिश्मे भी अजब हैं 
मेंह टूट के बरसे भी तो बादल नहीं होते 

कुछ मुश्किलें ऐसी हैं कि आसाँ नहीं होतीं 
कुछ ऐसे मुअम्मे हैं कभी हल नहीं होते 

शाइस्तगी-ए-ग़म के सबब आँखों के सहरा 
नमनाक तो हो जाते हैं जल-थल नहीं होते 

कैसे ही तलातुम हों मगर क़ुल्ज़ुम-ए-जाँ में 
कुछ याद-जज़ीरे हैं कि ओझल नहीं होते 

उश्शाक़ के मानिंद कई अहल-ए-हवस भी 
पागल तो नज़र आते हैं पागल नहीं होते 

सब ख़्वाहिशें पूरी हों 'फ़राज़' ऐसा नहीं है 
जैसे कई अशआर मुकम्मल नहीं होते

No comments:

Post a Comment