सारी उम्र गांव- गांव,शहर-शहर भटके हैं।।
उसके शहर में, एक रात ठहर के देखेंगे।।
ग़मज़दा हैं, समझ में कुछ भी नहीं आता ।
ऐसे माहौल में, कहकहा लगा कर देखेंगे।।
ढूंढने पर भी,बात सुनने वाला नहीं मिलता।
दिल की बात, खुद को ही सुना कर देखेंगे।।
तारीफ़ करते हैं हिरण भी,उसकी आंखों की।
ग़ज़ल सी आंखों की, तारीफ कर के देखेंगे।।
बहुत गुमान था हमें',अपनी हस्ती पर।
अब उसकी हस्ती में, मस्तूर हो कर देखेंगे।।
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