Wednesday, January 27, 2021

वतनशायरी

 वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं  खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं  

~जोश मलसियानी 

भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो  
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं  
~जोश मलसियानी
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है 
~बिस्मिल अज़ीमाबादी

मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम
मैं इश्क़ भी लिखना चाहूँ तो भी, इंकलाब लिख जाता है !
~भगत सिंह
वतन की ख़ाक ज़रा एड़ियाँ रगड़ने दे 
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा 
~अज्ञात

ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी 
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी 
~नजीर बनारसी 

हैं इस हवा में क्या क्या बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें
~नज़ीर अकबराबादी

हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस' 
रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी 
~अनीस अंसारी

जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
~कवि प्रदीप

अजल से वे डरें जीने को जो अच्छा समझते हैं।
मियाँ! हम चार दिन की जिन्दगी को क्या समझते हैं?
~रामप्रसाद बिस्मिल

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