वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं
~जोश मलसियानी
भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं
~जोश मलसियानी
भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं
~जोश मलसियानी
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
~बिस्मिल अज़ीमाबादी
मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम
मैं इश्क़ भी लिखना चाहूँ तो भी, इंकलाब लिख जाता है !
~भगत सिंह
मेरे जज़्बातों से इस कदर वाकिफ है मेरी कलम
मैं इश्क़ भी लिखना चाहूँ तो भी, इंकलाब लिख जाता है !
~भगत सिंह
मुझे यक़ीन है पानी यहीं से निकलेगा
~अज्ञात
ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
~नजीर बनारसी
~अज्ञात
ऐ शांति अहिंसा की उड़ती हुई परी
आ तू भी आ कि आ गई छब्बीस जनवरी
~नजीर बनारसी
हैं इस हवा में क्या क्या बरसात की बहारें
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें
~नज़ीर अकबराबादी
हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस'
रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी
~अनीस अंसारी
सब्ज़ों की लहलहाहट बाग़ात की बहारें
~नज़ीर अकबराबादी
हम शहीदों को कभी मुर्दा नहीं कहते 'अनीस'
रिज़्क़ जन्नत में मिले शान यहाँ पर बाक़ी
~अनीस अंसारी
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
~कवि प्रदीप
अजल से वे डरें जीने को जो अच्छा समझते हैं।
मियाँ! हम चार दिन की जिन्दगी को क्या समझते हैं?
~रामप्रसाद बिस्मिल
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
~कवि प्रदीप
अजल से वे डरें जीने को जो अच्छा समझते हैं।
मियाँ! हम चार दिन की जिन्दगी को क्या समझते हैं?
~रामप्रसाद बिस्मिल
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