Stayin' Alive
आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
Thursday, October 15, 2020
भला मैं तो था ही जुगुनू सा
समा की सर-ए-महफिल
रोज टूटते हैं कई तारे
मेहर-ओ-माह भी तो बख्त को रोए हैं
और भला मैं तो था ही जुगुनू सा
तेरा इश्क़ कैद-ए-पिंजरा था
जिसमें आज भी कैद हूँ
मेहर-ओ-माह भी रोज़ ढल जाते हैं
और समा से आज़ादी की गुज़ारिश करता हूँ।।
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment