मुझे बेहद पसंद है
काम-काज की दुनिया को
ये जिद कहाँ पसंद है
बिस्तर पर चादर की ओट में गुम
किसको रास नहीं
खुली आँखों से देखने को सपने
किसकी आस नहीं
नाश्ते में मनपसंद चीजों की फरमाइश न हो
तो क्या ही ठाठ रहे
ज़िंदगी की भागा दौड़ी में तो
सारे याद वो पाठ रहे
चाय की प्याली कब खाली हो
कौन ध्यान देता है
मेरे घर के बगीचे में अखबार
किसी कोने में रहता है
धीरे-धीरे सुबह से दुपहरिया आती है
धीमे से वो मेरे कमरे को नींद दे जाती है
फिर...
किसी यार की
किसी दिलदार की
याद लिए शाम पधारी है
पर,
मेरी ज़िंदगी उनके सामने कहाँ ही हारी है
अपनी बातों में तो बस ख़ुशियाँ ही होती है
गमों को बांटने की हिम्मत किसमें ही होती है
अब रातों का जागना शायद मेरा वक़्त है
ये वक़्त तो रुकता कहाँ, भागता हर वक़्त है
पर क्या ही सोचूं
अगले दिन की ही सोच लिए
मेरा दिन बीत जाता है।
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