Wednesday, June 10, 2020

आँख के आसुओ को पलको पे न रहने दो ।

आँख के आसुओ को पलको पे न रहने दो । 

पलको से गिरकर समन्दर बन जायेगे इन्हे धरती पे न बहने दो।

देते हैं दर्द अपनों को दिखकर आखो में नमी।

अपने लबो पर केकहे रहने दो।

आसूओ की परिभाषा अजीब होती है।

न समझे तो हसी समझे तो गमगीन होती हैं।

जन्मते बच्चे को देख परिवार की आखो में ख़ुशी के आंसू।

भूख लगने पर बच्चे के जुबा पर आंसू।

खिलौने, कपड़े, खलेने की ज़िद के आंस।  

अपनी ही कहानी खुद ब्या करते हैं आंस।

स्कूल जाते वक़्त डर के आंसू।

टीचर की डाट से उमड़ते आंसू।

मेहनत न करने पर मार के आंसू ।

रिजल्ट आने पर एक्ससाइटमेंट के आंसू ।

सेकेंडरी पास कर सही विषय न चुनने पर आंसू।

सही चुने तो फ्यूचर की चिंता के आंस।

गलती का आभास होने पर पश्चाताप के आंसू।

समझाने की जरुरत नहीं आसुओ को ये खुद समज जाते है।

परिस्थिति देख आखो से झरने की तरह निकल आते है।

शिक्षा पूरी कर उपयुक्त जॉब न मिले तो सपने पूरे न होने के आंस।

उपकृत जॉब मिले तो मन के दास्ताँ शब्दों से ब्या न करने के आंसू।

दुसरो को दुखी देख निकलते हैं आंसू ।

दुसरो को सुखी देख तूफ़ान की तरह टपकते हैं आंसू।

आज़ादी के वीरो की आखो में आज़ादी मिलने की संतोष के आंसू।

हम सुकून से सोये तो सरहद के सिपहियों कीआखो में सुकून के आंसू।

वर्ल्ड कप जीतने पर खिलाडी के आखो में जूनून के आंसू।

कोरोना वारियर्स पर हमले देख आखो से नहीं ह्र्दय से बहते हैं आंसू।

जब जॉर्ज फ्लॉयड पर ज़ुल्म हुआ तो बहने लगे इंसानियत के आंसू।

दुनिया में जब में सुख ,समृद्धि और शांति रहेगी।

तभी तो धरती माता की आखो से निकलेंगे आंसू।

आसुओ को भीतर न रहने दो।

कभी कभी तो किसी रूप में आखो से बहने दो।

दिखते हैं मोती होते हैं पानी यही हैं आसुओ की अजीब कहानी

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