क्या जाने क्यूं जलती है
सदियों से बिचारी धूप
- ज़फ़र ताबिश
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूंद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी
आज वक़्त से पहले ही शाम कर देगी
- सदार आसिफ़
धूप छूती है बदन को जब 'शमीम'
बर्फ़ के सूरज पिघल जाते हैं क्यूं
- फ़ारूक़ शमीम
मयस्सर फिर न होगा चिलचिलाती धूप में चलना
यहीं के हो रहोगे साए में इक पल अगर बैठे
- शहज़ाद अहमद
बैठा ही रहा सुब्ह से में धूप ढले तक
साया ही समझती रही दीवार मुझे भी
- शहज़ाद अहमद
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
धूप ही धूप थी इस के मुख पर
रूप ही रूप हवा में उतरा
- नासिर शहज़ाद
तमाम लोग इसी हसरत में धूप धूप जले
कभी तो साया घनेरे शजर से निकलेगा
- फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
धूप या'नी कि ज़र्द ज़र्द इक धूप
लाल क़िले से ढल गई होगी
- जौन एलिया
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