Sunday, April 19, 2020

मुसाफिर शायरी

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी
किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी
- बशीर बद्र


मुसाफ़िर ही मुसाफ़िर हर तरफ़ हैं
मगर हर शख़्स तन्हा जा रहा है
- अहमद नदीम क़ासमी

हर मुसाफ़िर के साथ आता है
इक नया रास्ता हमेशा से
- ताजदार आदिल


हुस्न उस का उसी मक़ाम पे है
ये मुसाफ़िर सफ़र नहीं करता
- ज़फ़र इक़बाल

नगरी नगरी फिरा मुसाफ़िर घर का रस्ता भूल गया
क्या है तेरा क्या है मेरा अपना पराया भूल गया
- मीराजी


ये आंसू ढूंढ़ता है तेरा दामन
मुसाफ़िर अपनी मंज़िल जानता है
- असद भोपाली

आख़िरी बस का एक मुसाफ़िर
शब-भर बैठा रह जाता है
- जानां मलिक


घर बसा कर भी मुसाफ़िर के मुसाफ़िर ठहरे
लोग दरवाज़ों से निकले कि मुहाजिर ठहरे
- क़ैसर-उल जाफ़री

दो क़दम चल आते उस के साथ साथ
जिस मुसाफ़िर को अकेला देखते 
- जमाल एहसानी


मुसाफ़िर जा चुका लम्बे सफ़र पर
अभी तक धूप आंखें मल रही है
- मिर्ज़ा अतहर ज़िया

No comments:

Post a Comment