Saturday, December 7, 2019

आरजू शायरी

मिरी अपनी और उस की आरज़ू में फ़र्क़ ये था 
मुझे बस वो उसे सारा ज़माना चाहिए था 
- बुशरा एजाज़

नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तुजू ही सही 
नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही 
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

न जी भर के देखा न कुछ बात की 
बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की 
- बशीर बद्र

इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं 
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद 
- कैफ़ी आज़मी

मुझ को ये आरज़ू वो उठाएँ नक़ाब ख़ुद 
उन को ये इंतिज़ार तक़ाज़ा करे कोई 
- असरार-उल-हक़ मजाज़

तुम्हारी याद में जीने की आरज़ू है अभी 
कुछ अपना हाल सँभालूँ अगर इजाज़त हो 
- जौन एलिया
मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए 
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं 
- नासिर काज़मी

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली 
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई 
- बशीर बद्र
मुझे ये डर है तिरी आरज़ू न मिट जाए 
बहुत दिनों से तबीअत मिरी उदास नहीं 
- नासिर काज़मी

तिरी आरज़ू तिरी जुस्तुजू में भटक रहा था गली गली 
मिरी दास्ताँ तिरी ज़ुल्फ़ है जो बिखर बिखर के सँवर गई 
- बशीर बद्र

बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए 
हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते 
- मजरूह सुल्तानपुरी
ख़्वाब, उम्मीद, तमन्नाएँ, तअल्लुक़, रिश्ते 
जान ले लेते हैं आख़िर ये सहारे सारे 
- इमरान-उल-हक़ चौहान

डरता हूँ देख कर दिल-ए-बे-आरज़ू को मैं 
सुनसान घर ये क्यूँ न हो मेहमान तो गया 
- दाग़ देहलवी

बाद मरने के भी छोड़ी न रिफ़ाक़त मेरी 
मेरी तुर्बत से लगी बैठी है हसरत मेरी 
- अमीर मीनाई
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू 
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर 
- जलील मानिकपूरी

दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह 
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के 
- जलील मानिकपूरी

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