आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
जो मिला ये है रास्ता, पर मंज़िल ये नहीं ख्वाहिशें उस दरिया की, जहाँ साहिल ही नहीं!
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