आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
"माना की जायज/आसाँ नहीं, इश्क़ तुम से बेपनाह करना" "मगर तुम अच्छे लगे, तो ठान लिया ये गुनाह करना"
माना की आसाँ नहीं, इश्क़ तुम से बेपनाह करना! तुम अच्छे लगे तो ठान लिया, खुद को तबाह करना!!
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