आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
राम तुम्हारे युग का रावण, अच्छा था। दस ते दस चेहरे, सब बाहर रखता था!
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