आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
कभी क़िताबों में सूखे गुलाब की तरह, कभी ज़िन्दगी में बिछड़े ख़्वाब की तरह, वो मिलते रहे हमसे , आंखों से बहते आब की तरह!
No comments:
Post a Comment