आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन, मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा!
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