आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
आँखे झीलों की तरह होंठ गुलाब जैसे अब भी होते है कई लोग किताब जैसे!
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