आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
अल्फ़ाज़ो की..काफ़ियाओ की.. कमी तो नही है, हर ग़ज़ल मुक्कमल हो..लाज़मी तो नही है, चलेगी क़लम तो निकलेंगे कुछ जज़्बात ज़रूर, अभी बंजर दिल की जमीं तो नही है...
पता उसके अश्क़ो का हमें चलता भी तो कैसे, मौजूद हवा मे कोई नमी तो नही है.....
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