आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मेरी तहजीब, अदब और मोहब्बत मेरे दर आए मेहमान से पूछो..
बात कड़वी है या मीठी है शहद सी हूजूर आप मेरी जुबान से पूछो..
पैर जमाए बैठे हैं हम जमीं पे ही मगर पहुंच आप मेरी आसमान से पूछो!
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