आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
क्या खूब अच्छी है/थी उसकी ये अदा, चार दिन इश्क मोहब्बत और फ़िर अलविदा!
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