आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
"जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।"
~ गयाप्रसाद शुक्ल 'स्नेही'
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