आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
सुलग रहा है दिल धीरे धीरे, क्यों तेज़ हवा चला रहे हो! सोचो ज़रा दिल की लगी को, बुझा रहे हो के जला रहे हो!
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