आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली कुछ यादें मेरे संग पांव पांव चली सफ़र जो धूप का किया तो तजुरबा हुआ वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली!
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