आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मदिराधर चुंबन, प्रसन्न मन, मेरा यही भजन औ पूजन! प्रकृति वधू से पूछा मैंने प्रेयसि, तुझको दूँ क्या स्त्री-धन? बोली, प्रिय, तेरा प्रसन्न मन मेरा यौतुक, मेरा स्त्री धन!
~मैथिलीशरण गुप्त
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