आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
रात तो वक़्त की पाबंद है ढल जाएगी, देखना ये है चराग़ों का सफ़र कितना है!
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