आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
जितने अपने थे सब पराए थे, हम हवा को गले लगाए थे! एक बंजर ज़मीन के सीने पर, मैंने कुछ आसमान उगाए थे!
-राहत इंडोरी
No comments:
Post a Comment