आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
तेरे इश्क़ से ही मिली है मेरे वजूद को ये शोहरत, मेरा ज़िक्र ही कहाँ था तेरी दास्ताँ से पहले ..!!
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