आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मैंने ये सोचकर नहीं बोए ख्वाबों के दरख्त, कि कौन सेहरा मे लगे शजर को पानी देगा !
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