आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
चराग़ बन के जल सकेगा क्या, मोम जैसा पिघल सकेगा क्या! तूने जूते तो मेरे पहन लिए, चाल भी मेरी चल सकेगा क्या!?
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