आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
उस शजर के साए में बैठा हूँ मैं, जिस की शाख़ों पर कोई पत्ता नहीं।
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