आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
नाख़ून अल्फ़ाज़ों के रोज़ पैने करता हूँ, ज़ख़्म रूह के सूखे अच्छे नहीं लगते !!
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