आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
साकी! इतना पिलाओ,"हम मस्त रहें मस्ती में", कुछ तो लोग हंसेगे हम पर 'गम' भरी बस्ती में ।
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