आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
मयख़ाने से, शराब से, साक़ी से, जाम से, अपनी तो ज़िन्दगी शुरू होती है शाम से! आ मेरा हाथ थाम बहुत हो गया नशा, यारों ने मय पिला दी बहुत तेरे नाम से!
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