आशु तो कुछ भी नहीं आसूँ के सिवा, जाने क्यों लोग इसे पलकों पे बैठा लेते हैं।
ख्वाबो की बातें वो जाने जिनका नींद से रिश्ता हो, मेरी तो रातें गुजरती है, चाँद को देखने में।
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